‘Phir se’ poem narrates the journey of overcoming struggles and embracing personal growth. It reflects on the countless times the poet faced challenges, fell, and learned to rise stronger.
The poem explores themes of self-belief, resilience, and the courage to leave the past behind to embrace a new beginning. It’s an inspiring tale of renewal, self-confidence, and preparing for life’s next big leap.
फिर से
फिर से कशमकश ने दस्तक दी है
फिर से बेकरार है दिल
फिर से आईना कुछ और कह रहा है
फिर से मुस्कुराहट गमगीन है
जिस राह पर चल कर पहुंची हूं यहां तक
ना जाने कितनी बार गिरी
और संभलने की कोशिश कर रही हूं अभी तक
उस राह ने बहुत कुछ दिया मुझे
पहले से बहुत बेहतर बनाया मुझे
खुद पर एतबार कैसे मुख्तलिफ कर देता है तुझे
खुद पर एतबार कर, उस एतबार पर यकीन दिलाया मुझे
उस राह को पीछे छोड़ जाने का वक्त आया है शायद
एक नई उड़ान की तैयारी करने का वक्त आया है शायद।
फिर से गिर जाने से डर लग रहा है मुझे
पर अब शायद गिर कर संभलने का हुनर सीख लिया है मैंने
तैयार हूं दिल से, इस नई शुरुआत के लिए
आईना भी खुश है, मेरी दिल की आवाज़ सुन के
Naseema Khatoon
PHIR SE
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