Aaine Mein Jhaank poem is an attempt to express a journey that many of us – the journey of rediscovering ourselves. There comes a time when we feel lost in the chaos of life, our spark dimmed, our courage shaken. These lines are a reflection of my own longing to reconnect with the fearless, joyful person I once was. Through this poem, I hope to remind myself – and you – that it’s never too late to look in the mirror, embrace our imperfections, and reignite the light within us.
आईने में झाँक
आईने में झाँक
मैं खुद को ढूंढने की कोशिश कर रही हूं।
भीड में जो वजूद खो गया था,
उसे तलाशने की ख्वाहिश कर रही हूं।
गमगीन पहले भी होते थे हम मगर,
नाउम्मीद कभी नहीं ।
आज फिर से उस ज़िंदादिल शख़्सियत
से मिलने की चाहत कर रही हूं।
बेबाक मुस्कुराने की आदत थी जिसे,
अंधेरी में रौशनी ढूंढने का हुनर था जिसे,
दिल के दर्द को हंस कर हवा में उड़ा देती थी जो।
अपनी ही गलतियों पर कहकहे लगा देती थी जो।
गिर कर संभालने की, और फिर से चलने की हिम्मत थी जिसमें।
आज फिर से उस शख़्सियत से मिलने की ख्वाहिश उठी है,
आईने में झाँक
उस खोई हुई पहचान को पाने की चाहत उठी है।
Naseema Khatoon
AAINE MEIN JHAANK
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