Dard Aur Sukoon – This poem delves into the sleepless hours of a restless heart grappling with pain and loss the lines reflect an intimate conversation between the self and sleep, where the heart yearns for solace but first but first seeks to embrace and let go of the wounds inflicted by a broken bond. A journey of healing, forgiveness, and self-acceptance unfolds through the verses.
Jab dard hota hai, to sukoon bhi ud jata hai.
Neend kya?
Tumhara khud wajood bhi kho jata hai.
DARD AUR SUKOON
नींद निगाहों से दूर
टकटकी बांध मुझे देख रही है,
आज मौसम बदला है
जरा दिल का हाल तो देख ले।
आज एक और रिश्ता टूटा है
ज़रा खुद को थाम
खुद को संभाल तो ले।
आज फिर किसी अपने ने दर्द दिया है
ज़रा इस दिल को दो बोल,बोल
बहला तो ले.
लरज़ते होठों की जुंबिश
ज़रा थम जाने दे
सुकून पा लेने दे।
नींद मुस्कुरा कर मुझसे कह रही है
थोड़ा वक्त और ले ले
ये ज़ख़्म ज़रा नया है
इसको भर जाने दे।
तुझे आगोश में मैं लूंगी जरूर
पर इस वक़्त ये आँसू बेह जाने दे।
तेरे दिल में बहुत कुछ भरा है
ख़ुद को माफ़ कर,
इसको निकल जाने दे।
ये अदना सा दिन था
और ये भी बीत गया है.
थोड़ा वक्त और ले ले
और इसके निशान मिट जाने दे।
Naseema Khatoon
DARD AUR SUKOON – EK BECHAIN RAAT KI KAHANI
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