Poem- Kashmakash dil ki
फिर से कश्मकश ने दस्तक दी है फिर से बेकरार है दिल फिर से आइना कुछ और कह रहा है फिर से मुस्कराहट गमगीन है जिस राह पर चल कर पहुची हूँ यहां तक न जाने कितनी बार गिरी और सँभलने की कोशिश कर रही हूं अभी तक इस राह ने बहुत कुछ दिया है मुझे, पहले से बेहतर बनाया है मुझे खुद पर ऐतबार कैसे मुख्तलिफ कर देता है तुझे खुद पर ऐतबार कर, इस ऐतबार पर यकीन दिलाया है मुझे अब इस राह को पीछे छोड जाने का वक्त आया है शायद एक नए उड़ान की तैयारी करने का वक्त आया है शायद। फिरसे गिर जाने से डर लग रहा है मुझे पर अब गिर कर सँभलने का हुनर सीख लिया है मैंने तैयार हूँ दिल से, इस नए शुरुवात के लिए आईना भी खुश है... मेरी दिल की आवाज सुन के Naseema Khatoon
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KASHMAKASH DIL KI
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