Hindi Poem- Tum Kab Chup Rahti ho
तुम कब चुप रहती हो काफी गहरा सवाल था या फिर ये सवाल नही बल्कि जवाब हो तंज़ कसता हुआ दिल में दर्द देने के लिए तुम कब चुप रहती हो क्या ये एक मर्द की दिल की आवाज़ थी जिसको बर्दाश्त नहीं उसके किये पर सवाल करना जो बात एक औरत के दिल में होती है उसे लब्ज़ो में पिरो देना जब कोई बेइज़्ज़त करे तो उसे खुद के लिए खड़ा होना एक मुख्तलिफ सोंच का बेखौफ मुज़ाहिरा करना एक औरत के बोलने पर ऐसे सवाल क्यों उठते है क्या उसकी सोच की कोई अहमियत नहीं क्या उसे अपने हक़ के लिए बोलने का हक़ नही। जब वो अपने लिए आवाज़ उठाती है तो क्यों ये उसे जताया जाता है जैसे उसने कुछ ग़लत कह दिया क्यों उसे चुप रहने की हिदायत दी जाती है क्यों............... एक औरत की खुद की सोच भी हो सकती है इसको क़ुबूल करना क्यों आज भी मुश्किल है। क्यों उसकी राये की कोई अहमियत नहीं होती क्यों उसके लब्ज़ो को दबाया जाता है क्यों उसकी मुख्तलिफ सोच को बार बार गलत ठहराया जाता है। वक़्त ने बहुत कुछ बदला है नजाने ये नया बदलाव कब आएगा कब औरतों की लब्ज़ो को अहमियत मिलेगी कब वो खुद पर यकीन कर सकेगी कब ऐसा होगा जब वो बेखौफ हो कर अपनी दिल की बात कह सकेगी Naseema Khatoon
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