KAHI DOOR JAANA CHAHTI HOON

‘Kahi door jaana chahti hoon’ reflects a deep yearning for solitude and self-rediscovery. It speaks about stepping away from the chaos of life, escaping responsibilities, and embracing moments of quiet introspection. The poet desires to listen to their heart, rediscover their inner world, and cherish moments of pure joy and freedom. It resonates with anyone seeking a temporary retreat to recharge and reconnect with their true self.

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कहीं दूर जाना चाहती हूँ  

कुछ वक़्त के लिए,  
कहीं दूर जाना चाहती हूँ।  
आंख बंद करके,  
खुद के ख्यालों को सुनना चाहती हूँ।  

कैसी सरगोशी कर रहा है दिल,  
क्यों बेईमान हो रहा है?  
उसे मुख़ातिब हो,  
बात की तह तक जाना चाहती हूँ।  

कुछ वक़्त के लिए,  
कहीं दूर जाना चाहती हूँ।  
कोई पुकारे न मुझे,  
कोई थामे न मुझे।  

बस पंख फैलाकर,  
उड़ जाना चाहती हूँ।  
थोड़ी देर के लिए,  
सारी ज़िम्मेदारियां भूल।  

दिल खोलकर खिलखिलाना चाहती हूँ।  
ज़िंदगी ने जो नए पन्ने खोले हैं,  
उन नए पन्नों में  
खुद के लिए वक़्त लिखवाना चाहती हूँ।  

बाहर के शोर को जीतकर,  
अपने अंदर की दुनिया से वाकिफ़ होना चाहती हूँ।  

कुछ वक़्त के लिए,  
कहीं दूर जाना चाहती हूँ...  

Naseema Khatoon

KAHI DOOR JAANA CHAHTI HOON

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Inspirational and motivational poem by Naseema Khatoon
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