Mohlat is a poem that captures the turmoil of a soul experiencing both the joy of love’s confession and the pain of imminent separation. A plea to the divine for just a few more moments to cherish the newfound connection, it speaks of longing, love, and the desire to find solace in a fleeting embrace.
मोहलत
कुछ पल और मुझे दे मेरे मौला,
आज ही इजहारे मोहब्बत हुआ है
और आज ही रुकसती का वक्त आ गया।
कुछ पल और मुझे दे मेरे मौला,
उनके आंसुओं को होठों से लगा
अपने इस बेचैन दिल को, करार दे दूं।
उनको सीने से लगा
अपने बेचैन दिल को ,
उनके साथ होने का यकीन तो दिला दूं।
कुछ पल और मुझे दे मेरे मौला,
उनके आगोश में जो लम्हा मिला है
जरा खुद को थपकी मार
उनके पास होने का अहसास तो दूं।
नजाने कबसे प्यासा था ये दिल मेरा,
उनकी आँखों में अपने लिए मोहब्बत देख,
उसकी प्यास तो बुझा दूं।
दो पल मुझे और दे मेरे मौला,
आज ही मोहब्बत का इज़हार हुआ है,
और आज ही रुकसती का, वक़्त आ गया।
Naseema Khatoon
A SHORT POEM – MOHLAT
Also read – HER DREAMS
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