Woh Lafz is a poem reflecting the pain inflicted by harsh words that pierce like arrows, leaving them deeply wounded. Despite their efforts to stay strong, those words shake their inner strength and challenge the resilience built over sleepless nights and hard-fought battles. The poet acknowledges the difficulty of rebuilding themselves but draws motivation from the experience to move forward. They confront doubts and negativity others pose, emphasizing the importance of self-belief and inner strength to overcome life’s challenges and pursue their dreams without hesitation.
WOH LAFZ
तीर की तरह
वो लफ्ज मेरे अंदर चुभते चले गए,
मैने बहुत कोशिश की,
खुद को सम्भालने की,
पर ना जाने क्यों वो अल्फ़ाज़,
मुझे अन्दर से तोडते चले गए,
बहुत मुश्किल से खड़ी हुई थी मैं,
कई रातें जाग कर इस मुकाम पर पहुंची थी मैं,
पर मेरे भरम को दो पल में तोड़ दिया,
अभी बहुत कुछ करना है इस जिंदगी में,
यह एहसास फिर से करा दिया।
बहुत मिलेंगे राहों में तुम पर वार करने वाले,
अब तक तुमने क्या हासिल किया है !
ये सवाल करने वाले,
उनको भूल कर अपनी मंजिल की तरफ बढ़ते जाना,
तुम क्या हो, क्या कर सकते हो,
इसका जवाब सिर्फ अपने हौस्लो से दिखाना।
Naseema Khatoon
WOH LAFZ
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